कनिष्क प्रथम. कुषाण वंश का राजा. जिसे कनिष्क महान भी कहते हैं. जिसका साम्राज्य बैक्ट्रिया से लेकर पटना तक फैला था. राजधानी गांधार थी. साम्राज्य में मथुरा और कपीसा जैसे बड़े शहर थे. बौद्ध धर्म को मानता था. उसकी इसी लगन से उस ज़माने का सिल्क रूट निकला था, जिसे चीन आज फिर से बनवा रहा है. 78 ईस्वी में कनिष्क राजा बना था, जिसे शक संवत का पहला साल माना गया. पर इतिहास तो इतिहास है. समय-समय पर बदलता रहता है. कई जगह ये भी कहा जाता है कि कनिष्क 127 ईस्वी में राजा बना था. जो भी हो, ये राजा बड़ा ही प्रतापी था. पर इसके बारे में बात बड़ी कम होती है. अशोक, हर्षवर्धन, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य और अकबर में ही लोग उलझ कर रह जाते हैं. पर कनिष्क का साम्राज्य भी इन लोगों के साम्राज्य से कम नहीं था. बल्कि ज्यादा विविधता वाला था.
कनिष्क का साम्राज्य उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर से होते हुए पटना तक था. कश्मीर में उसके नाम पर शहर भी था: कनिष्कपुर. आज भी इस जगह पर एक स्तूप का कुछ हिस्सा है. माना जाता है कि ये स्तूप कनिष्क का था.
कनिष्क ने अपने नाम से सोने के सिक्के चलवाए थे. सिक्कों पर इंडिया, ग्रीक, ईरान और दूसरी जगहों के देवी-देवताओं की तस्वीर होती थी. मतलब धर्म को लेकर कोई विशेष झंझट नहीं थी.
सिक्कों पर ही कनिष्क की तस्वीर मिलती है. लम्बे कोट और ट्राउजर पहने हुए. और लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान ने अंग्रेजों को देख ये सब पहनना सीखा था. हालांकि सिक्कों पर तो तस्वीर में कनिष्क के कंधे से आग-वाग भी निकलती है. वो सच में तो नहीं होता होगा.
कनिष्क की पूरी ड्रेस पहने हुए मूर्ति काबुल के म्यूजियम में थी. पर तालिबान ने म्यूजियम के साथ सब उड़ा दिया.
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