किसी भी देश का सिनेमा एवं साहित्य वर्तमान के साक्षी माने जाते हैं,और हमारी आने वाली पीढियां इन्हें देख कर प्रेरित भी होती हैं,ऐसे में अगर हम किसी ऐतिहासिक घटना पर कोई सिनेमा,फिल्म या धारावाहिक बना रहे हैं तो ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ बिना छेड़छाड़ किये उसको मूर्तरूप प्रदान किया जाए ताकि भविष्य की आने वाली पीढियां भ्रमित ना हो और किसी भी समुदाय की भावनाएं आहत ना हों।वर्तमान में कुछ फिल्म निर्माणकर्ता या धारावाहिक निर्माणकर्ता फिल्म को रोचक बनाने के लिए कुछ ऐसे तथ्य उसमे डाल देते हैं जो सत्यता से परे हैं तो विरोध होना एक सामान्य सी बात है।कुछ ऐसा ही फिल्म "पद्मावत" के सेट पर हुआ है ।करनी सेना के प्रमुख ने संजय लीला भंसाली से स्क्रिप्ट मांगी और कहा कि तब तक शूटिंग नहीं होगी जब तक वो स्क्रिप्ट को पढ़ ना ले लेकिन ऐसा करना भंसाली साहब के लिए भी आसान नहीं था कि फिल्म बनने से पहले स्क्रिप्ट किसी सामान्य आदमी को पढ़ा दे।बात आगे बढ़ी और फिर भंसाली साहब के साथ मारपीट भी हुई ।सुनने में ऐसा आया है कि पद्मावत फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती का प्रेम प्रसंग दिखाने का प्रयास किया गया है।इतिहास कुछ इस तरह है कि चित्तोड़ के रावल रतन सिंह रानी पद्मिनी को स्वयंवर विजय करके पत्नी रूप में चित्तोड़ लाये ।रानी पद्मिनी की सुंदरता की चर्चा हर जगह थी उस समय दिल्ली पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था।चित्तोड़ से भगाया गया एक जादूगर ख़िलजी से जा मिला और रानी पद्मिनी के बारे में बताया,ख़िलजी मेवाड़ तो जीतना चाहता ही था लेकिन अब मेवाड़ जीतने की लालसा के पीछे रानी पद्मिनी की सुंदरता भी एक वजह थी।अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ पर हमला कर दिया लेकिन कई महीने तक घेराबंदी के बाद भी वह दुर्ग विजय नहीं कर पाया तो उसने रावल रतन सिंह के सामने प्रस्ताव रखा कि वह संधि करना चाहता है अगर वह रानी को देख लेगा तो दिल्ली वापस लौट जायेगा इस पर रावल रत्नसिंह बौखला गए एवं युद्ध के लिए तैयार हो गए परंतु रानी पद्मिनी ने सूझ बूझ का परिचय देते हुए रावल को रोका और कहा कि मैं इसका उपाय बताती हूँ पद्मिनी ने एक शर्त रखी कि मैं केवल दर्पण में अपनी परछाई दिखाउंगी और साथ में मेरा पति भी होगा और सभी नौकर सैनिक भी होंगे ख़िलजी ने शर्त मंजूर कर ली और ख़िलजी को कुछ सैनिको के साथ दुर्ग में लाया गया तथा सरोवर के एक ओर ख़िलजी को बैठाया गया तथा दूसरी ओर रानी पद्मिनी और बीच में दर्पण लगाया गया दर्पण की परछाई पानी पर पड़ी और ख़िलजी ने रानी पद्मिनी को देखा किन्तु जैसे ही उसने रानी को देखा मंत्रमुग्ध हो गया और लौटते समय जब रावल रतन सिंह उसे महल से बाहर छोड़ने गया तो घात लगाए बैठे ख़िलजी की सेना ने आक्रमण कर दिया और रावल रत्नसिंह को बंदी बना लिया तथा रानी को सन्देश पहुचाया कि अगर वह हरम में आती है तो उसके पति को छोड़ दिया जायेगा रानी ने गोरा और बादल के साथ मिलकर योजना बनायी और सन्देश पहुचाया कि मैं आने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरे साथ अन्य 650 दासियाँ होंगी मैं केवल अपने पति को आखिरी बार देखना चाहती हूँ ख़िलजी शर्त मान गया रानी पद्मिनी के साथ 650 डोलियां गयी और कहारों के स्थान पर 1300 वीर राजपूत सैनिक गए उन्होंने ख़िलजी की सेना पर आक्रमण कर दिया और रावल रतन सिंह व रानी पद्मिनी को पुनः महल में ले आये इससे ख़िलजी बौखला गया और 7 महीने तक महल को घेरे रखा जिससे महल में रसद की कमी होने लगी अंत में 30000 वीर राजपूत सैनिकों ने केसरिया किया और युद्ध में कूद पड़े जिसमें गोरा व बादल भी थे गोरा और बादल ने अदम्य पराक्रम का साक्ष्य प्रस्तुत किया और वीरगति को प्राप्त हुए जब अंत में रानी पद्मिनी को हार होती दिखी तो उसने दुर्ग की अन्य 23000 राजपूत महिलाओं के साथ विवाह के जोड़े में सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर किया और एक साथ सब अग्नि की चिता पर जा बैठी और खुद को अग्नि में विलीन कर लिया ये देख अलाउद्दीन खिलजी हतप्रभ रह गया।ये इतिहास में है इसमें रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी के प्रेम प्रसंग या फिर आमना सामना होने तक की कोई घटना नहीं हुई।अगर भंसाली साहब इसके इतर कुछ प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं तो विरोध जायज है।जिस रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए उसकी इज्जत,आवरू के साथ खिलवाड़ कतई वर्दाश्त नहीं किया जायेगा।-- prepared by Deepak Mishra
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